तुम्हारा गुस्सा
हावि हो जाता है तुम पर
तुम्हारे प्यार पर
और तुम भी, बच्चों की तरह मुँह फूला कर चले जाते हो
'मुँह दिखाई' तो दूर की बात है
बात तक नही करते.
मैं जानती हूं -
दिल ही दिल मे कोसते भी हो मुझे
दुवाएँ मांगते हो
के मुजसे छुटकारा मिल जाए.
मैं भी तो ऊब जाती हूं कभी कभी
तुमसे-तुम्हारे गुस्से से,
मगर
तुम जानते हो?
में जो हूं ना,
तुम्हारी सांसो की तरह हूँ.
एक पल में ज़बरदस्ती जब मुझे
अपने-आप से बाहर फेकते हो
तो अगले ही पल मुझे खुद-ब-खुद
भीतर लेना पड़ता है तुम्हे
ताकि में तुम्हारी गहराइयों में जा सकु
तुम्हारे फेफड़ों से होकर लहू के हर कतरे तक फैल सकूँ
वैसे,
सांस कब तक रोक लेते हो?
ज्यादा से ज्यादा कितनी देर...???